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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

“क्षणिकाएँ“

धूप खुल कर हँसी हैं

कई दिनों के बाद 

ठिठुरन से अकड़ी कोंपलें 

अभी-अभी अँगड़ाई के मूड में 

आईं ही थीं कि..,

वह नटखट लड़की सी 

जा छिपी बादल की गोद में 

🍁

माना खूबसूरती में गुलाब का 

कोई सानी नहीं ..,

मगर उसकी महक अब

कहीं खो सी गई है

 शायद इसीलिए आजकल

अपनी आँखें…,

गुलमोहर को ढूँढती हैं 

🍁



मंगलवार, 26 नवंबर 2024

“वक़्त”

मैंने बचपन से कहा -

“चलो ! बड़े हो जाए !”

उसने दृढ़ता से जवाब दिया - 

ऐसा मत करना ! 

अगर हमारे बीच 

बड़प्पन की दरार आई तो 

एक दिन खाई बन जाएगी 

 तुम्हें पता तो है -

खाई को पाटना तुम्हारे और मेरे लिए

कितना मुश्किल हो जाएगा 

क्योंकि..,

“गया वक़्त दुबारा नहीं लौटता ।”


🍁


शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

हाइकु

क्षिlतिज पार -

शक्रचाप को देख 

रवि मुस्काया ।



हरी दूब में -

तिनके बटोरती

नन्ही गौरैया ।



रिक्त गेह में -

नीम पर चहके

नव जीवन ।



प्यासा पपीहा -

ताके नभ की ओर

भरी धूप में ।



ढलती साँझ -

सागर की गोद में

सोया सूरज ।


***

बुधवार, 6 नवंबर 2024

“जीवन “



कभी-कभी सोचती हूँ 

जीवन क्या है ?

एक रंगहीन सा 

ख़ाली कैनवास …,

जिसको जन्म से साथ लेकर 

पैदा होता है इन्सान

समय के साथ..,

अनुभवों से लबरेज़ 

अनगिनत रंग भरी  कटोरियाँ 

उम्र भर..,

इसके  फलक पर निरन्तर 

ढुलकती रहती हैं 

और फिर…,

तैयार होती है -

कुदरत की अद्भुत,अकल्पनीय 

आर्ट-गैलरी ..,

जिसमें समाहित है 

अपने आप में विविधताओं से परिपूर्ण 

अनेकों लैण्डस्केप..,

 प्रकृति में यह प्रक्रिया अनवरत

बिना रूके , बिना गतिरोध 

चलती रहती है 

शायद..,

इसी का नाम जीवन है 


***



शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

शरद पूर्णिमा [ चोका ]

       ( click by me ) 

नभ-आँगन 

कोजागरी यामिनी 

पूर्ण मयंक

आँख मिचौली खेले

अभ्र ओट मे

प्रफुल्लित हर्षित 

साँवली घटा

देख ज्योत्सना छटा

धरा गोद में

रवितनया तीरे

श्री जी के संग

महारास में लीन

कृष्ण मुरारी

यशुमति नन्दन

शत शत वन्दन 


***

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024

“सच”

                                  ( click by me )

धारा समय की दिनोंदिन 

आगे बढ़ती जाएगी 

सच कहूँ ..,

बीते दिनों की बहुत याद आएगी


पता था ये दिन 

आगे ऐसे न रहेंगे

बदलेंगे कल हम 

पहले जैसे न दिखेंगे 

देखते ही देखते 

अजनबीयत बढ़ती जाएगी 


सच कहूँ ..,

बीते दिनों की बहुत याद आएगी 


कच्ची सी धूप को 

 वक़्त पर पकना ही था

व्यवहारिक से दायरों में

हम सबको बँधना ही था 

संबंधों में अनुबंधों की 

कहानी दोहराई जाएगी 


सच कहूँ..,

बीते दिनो की बहुत याद आएगी 


***


बुधवार, 25 सितंबर 2024

“त्रिवेणी”

उलझी हुई “जिग्सॉ पजल” लगती है जिन्दगी 

जब इन्सान अपनी समझदारी के फेर में 


रिश्तों को सहूलियत अनुसार खर्च करता है ।


*

सुनामी की लहरों सरीखी है लिप्सा की भूख

कल ,आज और कल का कड़वा सच


युद्धों का पेट मानवता को खा कर भरता है ।


*