भोर हुए तो आंगन महके
उसके बिन सब बहके-बहके
बिन उसके दृग बोझिल हाय !
क्या सखी धूप ? ना सखी चाय ।।
इधर-उधर डरता सा तांके ,
मेरे अंगना निशदिन झांके।
सुन्दरता उसकी चित्त चोर ,
क्या सखी साजन? ना सखी मोर ।
वो आए कुदरत हर्षाये
नभ में घोर घटाएँ छाएं
मधुर -मधुर उसमें मादकता
क्या सखी महुवा ? ना सखी पुरवा ।
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बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 27 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सहित धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी ! सादर नमस्कार !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार !
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