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मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

“कह मुकरियाँ”

 



भोर हुए तो आंगन महके

उसके बिन सब बहके-बहके

बिन उसके दृग बोझिल हाय !

क्या सखी धूप ? ना सखी चाय ।।


इधर-उधर डरता सा तांके ,

मेरे अंगना निशदिन झांके।

सुन्दरता उसकी चित्त चोर ,

क्या सखी साजन? ना सखी मोर ।


वो आए कुदरत हर्षाये

नभ में घोर घटाएँ छाएं

मधुर -मधुर उसमें मादकता

क्या सखी महुवा ? ना सखी पुरवा ।


***





6 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 27 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
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    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सहित धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी ! सादर नमस्कार !

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  3. उत्तर
    1. सुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार !

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"