भोर हुए तो आंगन महके
उसके बिन सब बहके-बहके
बिन उसके दृग बोझिल हाय !
क्या सखी धूप ? ना सखी चाय ।।
इधर-उधर डरता सा तांके ,
मेरे अंगना निशदिन झांके।
सुन्दरता उसकी चित्त चोर ,
क्या सखी साजन? ना सखी मोर ।
वो आए कुदरत हर्षाये
नभ में घोर घटाएँ छाएं
मधुर -मधुर उसमें मादकता
क्या सखी महुवा ? ना सखी पुरवा ।
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- "मीना भारद्वाज"