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गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

“क्षणिकाएँ”

वक्त की शाख़ पर

 लदे खट्टे-मीठे फलों सरीखे 

अनुभवों को 

चिड़िया के चुग्गे सा

अनवरत 

चुनता रहता है इन्सान 

इसी का नाम ज़िंदगी है 


***


सोच के बिंदु न मिले तो

रहने दो स्वतन्त्र 

उस राह पर चलने का

भला क्या सार

जो गंतव्य की जगह चौराहे पर

जा कर ख़त्म हो जाए 


***



8 टिप्‍पणियां:

  1. गहन भाव लिए बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी।
    जीवन के अनुभव को शब्दों में पिरोकर
    भाव गूँथने की कला आप बखूबी जानती हैं दी।
    सस्नेह प्रणाम दी।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ अप्रैल २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखनी को मान मिला । स्नेहिल नमस्कार सहित हृदय तल से हार्दिक आभार श्वेता जी ! सस्नेह …॥

      हटाएं
  2. क्योंकि ज़िंदगी स्वतंत्रता के बल पर ही आगे बढ़ती है

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को प्रवाह मिला ।हृदय तल से हार्दिक आभार अनीता जी ! सादर नमस्कार!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत-बहुत आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर सारतत्व को ग्रहण किए हुए सुंदर क्षणिकाएँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत-बहुत आभार 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"