वक्त की शाख़ पर
लदे खट्टे-मीठे फलों सरीखे
अनुभवों को
चिड़िया के चुग्गे सा
अनवरत
चुनता रहता है इन्सान
इसी का नाम ज़िंदगी है
***
सोच के बिंदु न मिले तो
रहने दो स्वतन्त्र
उस राह पर चलने का
भला क्या सार
जो गंतव्य की जगह चौराहे पर
जा कर ख़त्म हो जाए
घाटी में…
बर्फ से ढके मौन खड़े हैं
देवदार
हवा की सरसराहट से
काँपती कोई पत्ती
जब हो जाती है बर्फ विहीन
तो सजग हो उठता है पूरा पेड़
ऊपरी सतह की पत्तियाँ
साझा कर लेती हैं
तुषार कण
साझा सुख-दुख संजीवनी है
परिवार की