समझ से परे है जीवन दर्शन की बातें
बहुत बार .,,
अच्छा समय, अच्छे अनुभव, अच्छी बातें
ब्लैक-बोर्ड पर लिखे
संदेश की तरह हो जाती हैं वाइप आउट
लेकिन समस्या तब
सुरसा सरीखा मुँह खोल देती है
जब हज़ार झंझटों के बाद भी
दर्द की बातें ..
चिपकी रह जाती है मन की दीवारों पर
उखड़े पलस्तर की मानिंद
***
मृगतृष्णा का आभास
अथाह बालू के समन्दर में ही नहीं होता
कभी-कभी हाइवे की सड़क पर
चिलचिलाती धूप में भी
दिख जाता है बिखरा हुआ पानी
बस…,
मन में प्यास की ललक होनी चाहिए
***
मन छूते बिंब से जीवन का यथार्थ वर्णित करती सुंदर क्षणिकाएँ दी।
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों बाद आपकी रचना पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा।
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया से और पाँच लिंकों का आनन्द के आमन्त्रण से लेखनी को सार्थकता मिली।हृदयतल से हार्दिक आभार एवं स्नेहिल नमस्कार श्वेता जी !
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यंजना
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है 🙏 सुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार !
जवाब देंहटाएंवाह! सखी मीना जी, बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली।हृदयतल से हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार शुभा जी !
हटाएंजीवन दर्शन तो मन के पार जाकर ही समझ आता है, मृगतृष्णा के जल से प्यास नहीं बुझती, सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली।हृदयतल से हार्दिक आभार एवं सादर नमस्कार अनीता जी !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ।हृदयतल से हार्दिक आभार सर ! सादर नमस्कार !
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