Copyright

Copyright © 2025 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

“ज़िन्दगी” (2)

ज़िन्दगी ! 

तुझसे नेमत में मिले हर दर्द को मैंने 

तपती रेत के सागर में..,

 सूखे कण्ठ में पानी की एक बूँद सा पिया है 

 

 तुम्हारी दी  हर साँस को मैंने

 जी भर कर..,

नवजात शिशु समान हर पल

पहली साँस सा लिया है 


कई बार जीती हूँ , कई बार हारी हूँ 

जीत-हार की जंग में..,

न अपनों से शिकवा न ग़ैरों से गिला है 


मिली है तू पहली बार या आख़िरी बार

इस बात को कर दरकिनार 

तुम्हें इस बार मैंने ..,

पूरी शिद्दत के साथ जीया है 


***