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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

“ज़िन्दगी” (2)

ज़िन्दगी ! 

तुझसे नेमत में मिले हर दर्द को मैंने 

तपती रेत के सागर में..,

 सूखे कण्ठ में पानी की एक बूँद सा पिया है 

 

 तुम्हारी दी  हर साँस को मैंने

 जी भर कर..,

नवजात शिशु समान हर पल

पहली साँस सा लिया है 


कई बार जीती हूँ , कई बार हारी हूँ 

जीत-हार की जंग में..,

न अपनों से शिकवा न ग़ैरों से गिला है 


मिली है तू पहली बार या आख़िरी बार

इस बात को कर दरकिनार 

तुम्हें इस बार मैंने ..,

पूरी शिद्दत के साथ जीया है 


***



8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! इतनी शिद्धत से जीना आ जाये तो कोई शिकायत रहेगी कैसे

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    1. आपकी प्रशंसा पाकर लेखन सार्थक हुआ ।हृदय तल से हार्दिक आभार एवं धन्यवाद अनीता जी ! सादर नमस्कार !

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 22 फरवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सहित धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी ! सादर नमस्कार !

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  3. ज़िन्दगी !
    तुझसे नेमत में मिले हर दर्द को मैंने
    तपती रेत के सागर में..,
    सूखे कण्ठ में पानी की एक बूँद सा पिया है
    दुख हो या सुख बस स्वीकार कर ले हृदय से...क्योंकि क ई बार जिंदगी ऑप्शन नहीं देती...फिर शांति से या माथा पीटकर दिन तो गुजारने ही होते हैं...
    और ऐसे सिद्दतसे जी ले तो बात ही क्या !
    बहुत ही चिंतनपरक एवं लाजवाब सृजन ।

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  4. वाह! बहुत खूब, जिंदगी जीओ तो ऐसे जियो।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"