बर्फ गिरी है पहाड़ों पर..,
अपनी गठरी की गाँठ
खोल कर रख दी
कुदरत ने…,
अतिथियों के स्वागत में
चीड़ और सनोबर
बर्फ से ढक कर भी
इठला रहे हैं
कहीं-कहीं…,
ब्यूस की टहनियाँ
मुस्कुरा कर हिला रही है
डाली रूपी हाथ
फ़ुर्सत कहाँ हैं खुद पर जमी
बर्फ हटाने की..,
यह काम तो अपने आप कर देंगी
हवाएँ..,
दिल चाहता है कि
इन्सान और प्रकृति का रिश्ता
अनन्त काल तक यूँ ही
चलता रहे …,!
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इन्सान प्रकृति से जुड़ जाए गर मन से तो इससे खूबसूरत कोई और बात नहीं होगी..।
जवाब देंहटाएंअति मनमोहक शब्दचित्र दी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३१ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदय आह्लादित करती सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी ! पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌹
हटाएंदिल चाहता है कि
जवाब देंहटाएंइन्सान और प्रकृति का रिश्ता
अनन्त काल तक यूँ ही
चलता रहे …,!
सुंदर चित्रण
सृजन को मान प्रदान करती उपस्थिति के लिए हृदय तल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌹
हटाएंयह रिश्ता तो तभी चलेगा जब मानव चाहेगा
जवाब देंहटाएंमानव मन प्रकृति से जुड़ा रहे यही कामना है अनीता जी ! हृदय तल से आपका हार्दिक आभार ।नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌹
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहृदय तल से हार्दिक आभार एवं धन्यवाद सर ! नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐
हटाएंप्रकृति प्रेमी कवि की दृष्टि से देखें तो सब ऐसे ही प्रकृति से प्रेम करने लगेंगे फिर साथ तो बना ही रहेगा
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब मनमोहक रचना ।
सृजन को सार्थक करती सराहना हेतु
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आपका हार्दिक आभार सुधा जी !नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ 🌹