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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

“क्षणिकाएँ“

धूप खुल कर हँसी हैं

कई दिनों के बाद 

ठिठुरन से अकड़ी कोंपलें 

अभी-अभी अँगड़ाई के मूड में 

आईं ही थीं कि..,

वह नटखट लड़की सी 

जा छिपी बादल की गोद में 

🍁

माना खूबसूरती में गुलाब का 

कोई सानी नहीं ..,

मगर उसकी महक अब

कहीं खो सी गई है

 शायद इसीलिए आजकल

अपनी आँखें…,

गुलमोहर को ढूँढती हैं 

🍁



12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 16 दिसंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सहित धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी !

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सर !

      हटाएं
  4. प्रकृति का सुंदर शब्द चित्रण !

    जवाब देंहटाएं
  5. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!!!
    मनमोहक सी क्षणिकाएं जो बात कुछ और ही कह रही
    बहुत ही लाजवाब👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद सुधा जी ! आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
      सस्नेह आभार ।

      हटाएं

  7. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार रूपा सिंह जी !

    जवाब देंहटाएं
  8. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार भारती जी !

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"