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शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

“क्षणिकाएँ“

धूप खुल कर हँसी हैं

कई दिनों के बाद 

ठिठुरन से अकड़ी कोंपलें 

अभी-अभी अँगड़ाई के मूड में 

आईं ही थीं कि..,

वह नटखट लड़की सी 

जा छिपी बादल की गोद में 

🍁

माना खूबसूरती में गुलाब का 

कोई सानी नहीं ..,

मगर उसकी महक अब

कहीं खो सी गई है

 शायद इसीलिए आजकल

अपनी आँखें…,

गुलमोहर को ढूँढती हैं 

🍁