धूप खुल कर हँसी हैं
कई दिनों के बाद
ठिठुरन से अकड़ी कोंपलें
अभी-अभी अँगड़ाई के मूड में
आईं ही थीं कि..,
वह नटखट लड़की सी
जा छिपी बादल की गोद में
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माना खूबसूरती में गुलाब का
कोई सानी नहीं ..,
मगर उसकी महक अब
कहीं खो सी गई है
शायद इसीलिए आजकल
अपनी आँखें…,
गुलमोहर को ढूँढती हैं
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