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मंगलवार, 26 नवंबर 2024

“वक़्त”

मैंने बचपन से कहा -

“चलो ! बड़े हो जाए !”

उसने दृढ़ता से जवाब दिया - 

ऐसा मत करना ! 

अगर हमारे बीच 

बड़प्पन की दरार आई तो 

एक दिन खाई बन जाएगी 

 तुम्हें पता तो है -

खाई को पाटना तुम्हारे और मेरे लिए

कितना मुश्किल हो जाएगा 

क्योंकि..,

“गया वक़्त दुबारा नहीं लौटता ।”


🍁


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 27 नवंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. पाँच लिंकों का आनन्द में “हाइकु” सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सहित धन्यवाद पम्मी जी !

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  3. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सर !

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  4. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सर !

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  5. बहुत खूब ... सच है की बचपन की गलियाँ पार करने का मन नहीं रहता ...

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  6. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार नासवा जी !

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  7. हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मनोज भाई !

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  8. बड़प्पन की दरार पाटना वाकई मुश्किल है
    बचपन ही सही
    अप्रतिम सृजन ।

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  9. सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली । तहेदिल से आभार सुधा जी !

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"