मैंने बचपन से कहा -
“चलो ! बड़े हो जाए !”
उसने दृढ़ता से जवाब दिया -
ऐसा मत करना !
अगर हमारे बीच
बड़प्पन की दरार आई तो
एक दिन खाई बन जाएगी
तुम्हें पता तो है -
खाई को पाटना तुम्हारे और मेरे लिए
कितना मुश्किल हो जाएगा
क्योंकि..,
“गया वक़्त दुबारा नहीं लौटता ।”
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 27 नवंबर को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द में “हाइकु” सम्मिलित करने के लिए सादर आभार सहित धन्यवाद पम्मी जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सर !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... सच है की बचपन की गलियाँ पार करने का मन नहीं रहता ...
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जवाब देंहटाएंहृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार नासवा जी !
लाजबाब सृजन
जवाब देंहटाएंहृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मनोज भाई !
जवाब देंहटाएंबड़प्पन की दरार पाटना वाकई मुश्किल है
जवाब देंहटाएंबचपन ही सही
अप्रतिम सृजन ।
सारगर्भित प्रतिक्रिया से लेखनी को सार्थकता मिली । तहेदिल से आभार सुधा जी !
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