क्षिlतिज पार -
शक्रचाप को देख
मुस्काया रवि ।
हरी दूब में -
तिनके बटोरती
नन्ही गौरैया ।
रिक्त गेह में -
नीम पर चहके
नव जीवन ।
प्यासा पपीहा -
ताके नभ की ओर
भरी धूप में ।
ढलती साँझ -
सागर की गोद में
सोया सूरज ।
***
मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏 - "मीना भारद्वाज"
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- "मीना भारद्वाज"