उलझी हुई “जिग्सॉ पजल” लगती है जिन्दगी
जब इन्सान अपनी समझदारी के फेर में
रिश्तों को सहूलियत अनुसार खर्च करता है ।
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सुनामी की लहरों सरीखी है लिप्सा की भूख
कल ,आज और कल का कड़वा सच
युद्धों का पेट मानवता को खा कर भरता है ।
बहुत सुंदर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर !
बेहद लाजवाब ,गहन अर्थ समेटे सुंदर त्रिवेणी दी।सादर।---------जी नमस्ते,आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी हैपांच लिंकों का आनंद पर...आप भी सादर आमंत्रित हैं।सादरधन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने और सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार श्वेता जी !सस्नेह…,!!
अत्यंत प्रभावशाली त्रिवेणी
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से आभार 🙏
बेहतरीन दोनों त्रिवेनियाँ ...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार नासवा जी !
वाह!!!क्या बातगहन चिंतनपरक...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सुधा जी!
मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏 - "मीना भारद्वाज"
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर !
जवाब देंहटाएंबेहद लाजवाब ,गहन अर्थ समेटे सुंदर त्रिवेणी दी।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने और सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार श्वेता जी !
जवाब देंहटाएंसस्नेह…,!!
अत्यंत प्रभावशाली त्रिवेणी
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोनों त्रिवेनियाँ ...
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार नासवा जी !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंक्या बात
गहन चिंतनपरक...
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सुधा जी!
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