Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

बुधवार, 25 सितंबर 2024

“त्रिवेणी”

उलझी हुई “जिग्सॉ पजल” लगती है जिन्दगी 

जब इन्सान अपनी समझदारी के फेर में 


रिश्तों को सहूलियत अनुसार खर्च करता है ।


*

सुनामी की लहरों सरीखी है लिप्सा की भूख

कल ,आज और कल का कड़वा सच


युद्धों का पेट मानवता को खा कर भरता है ।


*

6 टिप्‍पणियां:

  1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर !

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद लाजवाब ,गहन अर्थ समेटे सुंदर त्रिवेणी दी।
    सादर।
    ---------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने और सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से हार्दिक आभार श्वेता जी !
    सस्नेह…,!!

    जवाब देंहटाएं
  4. अत्यंत प्रभावशाली त्रिवेणी

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदयतल से आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"