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शनिवार, 31 अगस्त 2024

“यक़ीन”

अच्छी बात तो नहीं 

 फ़िज़ूल बातों को तूल दिया जाए

व्यर्थ की बहस क्यों बढ़ाएँ

नहीं बनती  आपस में तो 

कोई बात नहीं..,

 फिर से अजनबी हो जाएँ 


अनावश्यक औपचारिकताओं में

उलझना कैसा..?

मिलते-जुलते  नहीं विचार 

 तो  इस बारे में अधिक

सोचना क्या..?

 सुने मन की और मन की करते जाएँ


वक़्त का तक़ाज़ा है 

अपनी मुट्ठी बाँध के रखना

खोल कर मुट्ठी 

क्यों अपना सामर्थ्य कमजोर करना

अच्छा है खुद पर यक़ीन ..,

जब तक जीयें अपने पर यक़ीन करते जाएँ 


***


24 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 01 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय तल आभार 🙏

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर !

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  4. सुंदर सृजन !!
    कभी-कभी मन के पार भी देख आयें, जहाँ एक है, दो नहीं, उस लोक का भ्रमण कर आयें

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार अनीता जी !

      हटाएं
  5. अनावश्यक औपचारिकताओं में
    उलझना कैसा..?
    मिलते-जुलते नहीं विचार
    तो इस बारे में अधिक
    सोचना क्या..?

    साँच को आँच नहीं, आम कृतिम चलन को उधृत करती कविता 🙏🙏

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार बलबीर सिंह जी 🙏

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  6. लाजवाब सृजन।
    ताल्लुख बोझ बन जाए तो उसको छोड़ना अच्छा।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार रूपा जी !

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  7. व्यर्थ की बहस क्यों बढ़ाएँ

    नहीं बनती आपस में तो

    कोई बात नहीं..,

    फिर से अजनबी हो जाएँ
    सही कहा बेवजह झगड़े फसाद डिप्रेशन से तो कई बेहतर है फिर से अजनबी हो जाना...
    बहुत सुन्दर...।

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  8. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार सुधा जी !

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर !

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  10. बात तो ठीक है मीना जी, परंतु इतना आसान नहीं है अजनबी हो जाना ! वैसे जहाँ बात मानसिक शांति और सुकून की आती है वहाँ बहस को छोड़कर आगे बढ़ जाना ही सही है.

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    1. सत्य कथन मीना जी ! आसान कहाँ होता है अजनबी होना .., पर होने के बाद शांति और सुकून भले भले से लगते हैं । दिल से शुक्रिया आपकी स्नेहिल उपस्थिति हेतु ।

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  11. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार मनोज जी !

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  12. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सर !

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  13. फिर से अजनबी हो जाना तो कठिन ही होता है मीना जी और कभी-कभी ऐसा करना मुनासिब भी नहीं होता क्योंकि निभाना ज़रूरी होता है। पर हाँ, आपकी इस बात की मूल भावना जो आरंभिक पंक्तियों में निहित है, पूर्णतः उचित है जिसे हम सभी को आत्मसात् करना चाहिए।

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  14. आपकी चिन्तन परक अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभारी हूँ जितेंद्र जी !

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  15. सहमत ... अपनी शर्तों पे जीना और जीते जाना ... मार्ग तो यही उत्तम है ...

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    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिये हृदय तल से हार्दिक आभार नासवा जी !

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"