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शनिवार, 31 अगस्त 2024

“यक़ीन”

अच्छी बात तो नहीं 

 फ़िज़ूल बातों को तूल दिया जाए

व्यर्थ की बहस क्यों बढ़ाएँ

नहीं बनती  आपस में तो 

कोई बात नहीं..,

 फिर से अजनबी हो जाएँ 


अनावश्यक औपचारिकताओं में

उलझना कैसा..?

मिलते-जुलते  नहीं विचार 

 तो  इस बारे में अधिक

सोचना क्या..?

 सुने मन की और मन की करते जाएँ


वक़्त का तक़ाज़ा है 

अपनी मुट्ठी बाँध के रखना

खोल कर मुट्ठी 

क्यों अपना सामर्थ्य कमजोर करना

अच्छा है खुद पर यक़ीन ..,

जब तक जीयें अपने पर यक़ीन करते जाएँ 


***