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मंगलवार, 30 जुलाई 2024

“बेटियाँ”

बालपन में पापा के 

काफ़ी नज़दीक होती हैं 

बेटियाँ..,

सारे आकाश के चन्दोवे सा 

लगता है 

उन्हें पापा का हाथ

 जिसके तले 

 सरदी,गरमी और बरसात में

  महफ़ूज़ समझती हैं 

वे अपने आपको..,

दिन भर कामों में उलझी

माँ का व्यक्तित्व उनको

पापा के समक्ष गौण सा लगता है 

लेकिन ..,

जैसे ही बेटियाँ 

बचपन की दहलीज़ से 

बड़प्पन के आँगन में जुड़ती है 

तब ..,

जीवन की परिभाषा 

बदल सी जाती है 

अनुभूत जीवनानुभव.., 

उनको माँ के अस्तित्व का 

बोध कराते हैं 

और तब बेटियों को

पूरे घर को सरल सहज भाव से

एक सूत्र में जोड़ती

माँ के आगे

पापा उलझे-उलझे 

नज़र आते हैं 

***




20 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद सहित सादर आभार शिवम जी !

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  2. जी दी मन बहा जा रहा है आपकी लिखी भावनाओं की निर्झरी में।
    क्या लिखें निःशब्द हूँ।
    हर बेटी के मन के कितनी महीन ,गहन भावों को शब्द दिए है आपने।
    सस्नेह प्रणाम दी।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरे सृजन को मान मिला श्वेता आपकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति से ..,आपका दिल से शुक्रिया । पाँच लिंकों का आनन्द में रचना को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार ।
    सस्नेह…,!!

    जवाब देंहटाएं
  4. भाव विभोर करती रचना
    बस इस अहसास को बेटी वाले ही समझ सकते हैं।
    मीना जी आपकी कलम को नमन

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार बलबीर सिंह जी !

      हटाएं
  5. विभोर करने वाली रचना
    इस अहसास को बेटी वाले ही महसूस कर सकते हैं
    मेरे जैसे दूर से खुशबू ही ले सकते हैं

    सादर नमन कलम को

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी अनमोल भावनाओं को सादर नमन !
    सराहना के रूप में सृजन को मान देने पुनः आपका हृदय तल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेटी के अस्तित्व की अति सुन्दर अनुभूति अभिव्यक्त की सखी। मां का प्रतिबिम्ब होती हैं बेटियां। हृदयस्पर्शी रचना सखी बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता युक्त मान प्रदान किया सखी ! हृदय तल से बहुत बहुत आभार!

      हटाएं

  8. सच बेटियां कब अपनी कई भूमिकाएं निभाने वाली हो जाती है, पता नहीं लगता,,,,,छोटे से बड़ा होना और घर संभालना जैसा काम वह मां से कब सीख लेती है, मां को तब खबर लगती है जब वह सारा काम चुपके से कर लेती है,,,बहुत सुन्दर

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  9. सृजन को प्रवाह प्रदान करते आपके विचार हृदय छू गए .., बहुत बहुत आभार कविता जी !

    जवाब देंहटाएं
  10. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हृदय तल से सादर आभार सर !

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हृदय तल से सादर आभार सर !

      हटाएं
  12. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।हृदय तल से सादर आभार सर !

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  13. बचपन में माँ को गौण समझने वाली बेटियाँ बडे होते ही माँ का अस्तित्व समझने लगती है...माँ जानती है ये सब तभी तो कहती है बड़ी होकर सब समझ जायेगी...
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब एवं भावपूर्ण सृजन।

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  14. सही बात सुधा जी ! सृजन को सार्थक करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"