बर्फ की कम्बल ओढ़े
पर्वत श्रृंखलाओं की
गगनचुंबी चोटियाँ ..,
सिर उठाये
मौज में खड़े त्रिशंकु वृक्ष
जिधर नज़र पसारो
मन्त्रमुग्ध करता..,
अद्भुत और अकल्पनीय
प्रकृति का सौंदर्य
मन को समाधिस्थ करता है ।
किसी पहाड़ की
खोह से ..,
कल-कल ,छल-छल
मोतियों सा बिखरता
काँच सरीखा पानी
आँखो के साथ मन
तृप्त करता है ।
कंधों पर अटकी टोकरियाँ
बोझ से लदे
फूल से मुस्कुराते आनन
सुन्दरता के प्रतिमान गढ़ते हैं ।
शहरी परिवेश में पला-पढ़ा
गर्वोन्नत- आत्ममुग्ध मनुष्य
अपनी ही नज़र के मूल्यांकन में
शून्य हो जाता है
जब..,
उर्ध्वमुखी पहाड़ों और
अधोमुखी घाटियों में
देवदूत सरीखे बादल
धीरे-धीरे उतरते देखता हैं ।
***