कमरे में मैंने करीने के साथ बहुत दिनों से
सहेज कर रखी हैं तुम्हारी धरोहरें..,
सहेज कर रखी हैं तुम्हारी धरोहरें..,
बस इसके लिए चन्द ख़्वाहिशों के पर कुतरने पड़े ।
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बेहिसाब अनियंत्रित धड़कनें न जाने
कौन सा संदेश देना चाहती हैं…,
तुम्हारे आने का..,या मेरे जाने का ।
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वक़्त के साथ प्रगाढ़ता दिखाने की धुन में
रिश्ते भी बोनसाई जैसे लगने लगते हैं ..,
कांट-छांट के बाद मोटे लेंस के चश्मे की दरकार होगी।
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तुम्हारे नेह की जड़ें गहरी जमी हैं
दिल की ज़मीन पर..,
बहुत बार खुरचीं मगर दुबारा हरी हो गई ।
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 20 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सहित हृदय तल से बहुत बहुत आभार आ . यशोदा जी पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने हेतु ।सादर..।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से सादर आभार सर !
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन ... तीन पंक्तियों में प्रखरता से कही बात ...
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से सादर आभार नासवा जी !
जवाब देंहटाएंअनुपम
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल हार्दिक आभार ।
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