सहेज कर रखी हैं तुम्हारी धरोहरें..,
बस इसके लिए चन्द ख़्वाहिशों के पर कुतरने पड़े ।
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बेहिसाब अनियंत्रित धड़कनें न जाने
कौन सा संदेश देना चाहती हैं…,
तुम्हारे आने का..,या मेरे जाने का ।
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वक़्त के साथ प्रगाढ़ता दिखाने की धुन में
रिश्ते भी बोनसाई जैसे लगने लगते हैं ..,
कांट-छांट के बाद मोटे लेंस के चश्मे की दरकार होगी।
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तुम्हारे नेह की जड़ें गहरी जमी हैं
दिल की ज़मीन पर..,
बहुत बार खुरचीं मगर दुबारा हरी हो गई ।
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