सुनहरी रेत में
सुघड़ता से पग धरती
पदचिह्नों पर ..,
पदचिह्न एकाकार करती
वह चली जा रही है धीरे-धीरे
ढाई अक्षर का शाश्वत स्वरूप
यूँ भी बना करता है
अनन्त अन्तरिक्ष विस्तार में
तरू-पल्लव की सरसराहट में
पक्षियों की चहचहाहट में
बारिश की बूँदों के धरती से
विलय में…,
प्रेम का सृजन हुआ करता है
कबीर का प्रेम..
निर्गुण ब्रह्म में सब कुछ देखता है
सूर का प्रेम ..,
शिशु मुस्कुराहट में खेलता है
गृहस्थी के सार में साँसें लेता है
तुलसी का प्रेम
तो अरावली की उपत्यकाओं में
गूँजता है मीरां का प्रेम
प्रेम सागर मंथन का फल है
कहीं वह शिव कण्ठ मे गरल
तो कहीं..,.
देवों का अमृत घट है
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से सादर आभार सर !
जवाब देंहटाएंआहा! कितना सुंदर लिखे हैं दी।
जवाब देंहटाएंकहीं शिवकंठ में गरल,तो कहीं देवों का अमृत घट।
बहुत गहन भाव लिए स्नेहिल अभिव्यक्ति।
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदय तल से आभार प्रिय श्वेता जी ! सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभार सहित धन्यवाद । सस्नेह नमस्कार !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से सादर आभार सर !
जवाब देंहटाएंवाह ! प्रेम एक रूप अनेक, इस एक ही तत्व से यह सारा संसार गढ़ा गया है जैसे, सुंदर सृजन !
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभार सहित धन्यवाद अनीता जी !
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से सादर आभार सर !
हटाएंसहज सरल सुंदर
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से सादर आभार सर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्दावली ... कमाल की रचना ...
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभार सहित धन्यवाद नासवा जी !
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