फूलों के भरम में बोता बबूल
काँटे की चुभन से रोता हूँ मैं
तैरना मैं जानता नहीं
भंवर में पैर रोपता हूँ मैं
ढूँढता हूँ पहचान अपनी
अनचीन्हें बोझ ढोता हूँ मैं
हूँ अपनी आदत से मजबूर
सपनों में बहुत खोता हूँ मैं
दर्द के दरिया में डूबा हुआ
हँसने की बहुत सोचता हूँ मै
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फूलों के भरम में बोता बबूल....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गहन अर्थ समेटे भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
सस्नेह।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ६ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली, सस्नेह हार्दिक आभार श्वेता जी ! पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार । सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंदर्द के दरिया में डूबा हुआ
जवाब देंहटाएंहँसने की बहुत सोचता हूँ मै
बहुत सटीक...सार्थक एवं सारगर्भित
लाजवाब सृजन ।
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया पा कर सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार सुधा जी ! सादर वन्दे !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार सर ! सादर वन्दे !
हटाएंनायाब कविता ...वाह मीना जी...बहुत खूब लिखा
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया पा कर सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार अलकनन्दा जी ! सादर वन्दे !
हटाएंहूँ अपनी आदत से मजबूर
जवाब देंहटाएंसपनों में बहुत खोता हूँ मैं
सपने थोड़ी देर के लिए सुकुन तो दे ही देते हैं तो उसमें को जाना भी अच्छा ही है, लाजवाब सृजन मीना जी 🙏
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार कामिनी जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार सर ! सादर वन्दे !
हटाएंचित्रण है आज के इंसान का ... सटीक ...
जवाब देंहटाएंआपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से आभार नासवा जी ! सादर वन्दे !
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