तुम्हारी ठहरी सी आवाज सुन
मेरा अन्तस मुस्कुरा दिया -
चलो ! अच्छा है ..,
तुम्हारे मन की थाह पाकर
मेरी उम्र के कुछ और
बरसों को उड़ान की ख़ातिर
पंख मिल गए ।
*
दुनिया देखने के लिए
मेरे लिए.,
मेरा अपना चश्मा ही ठीक है
तुम्हारे चश्मे के शीशों के
उस पार..,
मुझे सब कुछ धुंधला सा
नज़र आता है जिसको देख
मेरा मन ..,
बहुत किन्तु-परन्तु करता है
*