भूलना चाहती हूँ मैं
अपने आप को
मेरी स्मृतियाँ गाहे-बगाहे
बहुत शोर करती हैं
कोलाहल से दूर
मुझे मेरे सुकून की तलाश है
किसी पहाड़ से गिरते
झरने की हँसी के साथ
मुस्कुराये बेतरतीब घास की
ओट से कोई जंगली फूल
देखे मेरी ओर..,और
मुझे मुझी से भुला दे
मुझे उस पल की तलाश है
अक्सर पढ़ने-सुनने में
आता है - “ज़िन्दगी बसती है
किताबों से परे”
लेकिन ….
सांसारिक महाकुंभ में मुझे
गंगा-यमुना की नही
लुप्त सरस्वती की तलाश है
***
अगर मिले
जवाब देंहटाएंलुप्त सरस्वती तो
चंद बूँदें
बाँटिएगा जरूर
ताकि जीवन को
अशांति के झंझावातों
से मुक्ति मिल सके...।
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अत्यंत भावपूर्ण,.मन पर गहन.प्रभाव छोड़ती
बेहतरीन अभिव्यक्ति दी।
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अपनेपन से भरी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला श्वेता जी ! पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार आपका । सस्नेह….,।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहना के लिए हृदयतल से आभार सर ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंभूलना चाहती हूँ मैं
जवाब देंहटाएंअपने आप को
मेरी स्मृतियाँ गाहे-बगाहे
बहुत शोर करती हैं
कोलाहल से दूर
मुझे मेरे सुकून की तलाश है
सच में कभी खुशनुमा महौल में भी कुछ अतीती स्मृतियां अपने कोलाहल से अंतर्मन का सुकून हर लेती हैं तब लगता हैं कैसे भूलें इन यादों को...
अत्यंत भावपूर्ण लाजवाब सृजन।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सुधा जी ! सादर वन्दे !
हटाएंलेकिन ….
जवाब देंहटाएंसांसारिक महाकुंभ में मुझे
गंगा-यमुना की नही
लुप्त सरस्वती की तलाश है
सबको उसी एक बुंद की तलाश है, जबकि कहते हैं कि वो हमारे ही भीतर है, सभी की भावनाओं को शब्दों में पिरो दिया आपने मीना जी 🙏
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार कामिनी जी ! सादर वन्दे !
हटाएंबहुत अच्छी कविता. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के हृदयतल से आभार आपका । सादर नमन 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहना के लिए हृदयतल से आभार सर ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएं“ज़िन्दगी बसती है किताबों से परे”
जवाब देंहटाएंबेहतरीन, अल्फ़ाज़ कम हैं आपकी कलम प्रशंशा के लिए
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के हृदयतल से आभार आपका । सादर नमन !
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहना के लिए हृदयतल से आभार ज्योति जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबड़ी गहरी बात छुपी है आपकी अंतिम पंक्तियों में
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला । हार्दिक आभार एवं सादर वन्दे जितेंद्र जी !
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट. शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया के हृदयतल से आभार आपका । सादर नमन 🙏
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला । हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंख़ुद को भुलाने वाले पाल कभी नहीं आते जीवन में सिर्फ़ अल्ज़ाइमर के अलावा … कमल का सृजन …
जवाब देंहटाएंअल्ज़ाइमर जैसी बीमारी भगवान किसी को न दें कभी देखा है एक महिला को …,पूरा घर परेशान रहता था उनका ।यहाँ भूलना कोलाहल से दूर उस ध्यान जैसा है जिसमें शान्ति और जीवन में समरसता हो😊 बहुत बहुत आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हेतु । सादर नमन!!
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