कैलेण्डर के पहले पन्ने की
पहली तारीख़ को हमेशा से
करने थे कुछ संकल्प
खुद के लिए खुद से
समय के महासागर में कभी
खुद की तलाश में
कभी अपने अपनों की ख़ातिर
अपने ही वादे-इरादे
भूल जाया करता है आदमी
आने वाला हर नया साल
एक के बाद एक इस तरह
गुजर जाता है समीप से
जैसे पतझड़ में कोई ज़र्द पत्ती
झड़ी हो किसी चिनार से
कोई बात नहीं..,
पतझड़ है तो वसन्त भी है
समय है तो उम्मीद है और
उम्मीद पर दुनिया कायम है
ज़िन्दगी इसी का नाम है
***
सच कहा आपने
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से हार्दिक आभार जितेंद्र जी ! सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने दी....
जवाब देंहटाएंजब तक
जीवन के ठूँठ पर
फड़फड़ा रहा है पीला पत्ता
नयी कोंपलों की
उम्मीद खत्म नहीं होगी...।
-----
बहुत सुंदर सकारात्मक अभिव्यक्ति दी।
सस्नेह प्रणाम।
आपकी सराहना से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से हार्दिक आभार श्वेता ! सस्नेह…..।
जवाब देंहटाएंसहमत।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी 🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअनमोल सराहना हेतु हार्दिक आभार सर 🙏
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की हकीकत लिख दिया आपने।
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की बधाई।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ! आपको भी नववर्ष की असीम शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंसच बात ... लजवाब शबद ... नया साल मुबारक ...
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से हार्दिक आभार । आपको भी नववर्ष की असीम शुभकामनाएँ ।
हटाएंसुंदर सृजन , नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली हृदयतल से हार्दिक आभार । आपको भी नववर्ष की असीम शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएं