पंछी नभ में एक अकेलाजाने किस तलाश में धूल भरी राह में
मंजिल समीप है बस इसी अनुमान में
हवाओं के जोर में नभ के बहुत शोर में
तिनके सा उड़ चला बिसरा संगियों का रेला
रह गया नभ में अकेला
भ्रमित सा इत-उत उड़े साथी ढूँढता फिरे
भूख और प्यास से प्राण भी संत्रास में
जाने क्यों गुरूर कर हवाओं का रुख़ भूल कर
पाला उसने ख़ुद झमेला
हो गया नभ में अकेला
थक-हार टूटकर गिरा तरू की डाल पर
चारों तरफ देख कर टूटे पंख समेट कर
ग़लतियों से सीख कर मन ही मन यह प्रण किया
दोहरायेगा न जो अब झेला
पंछी तरू पर एक अकेला
***
ग़लतियों से तो पशु-पक्षी भी सीखते हैं, हम तो फिर इंसान हैं। अच्छी कविता है आपकी।
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जितेंद्र जी🙏
जवाब देंहटाएंपक्षी अकेला ,परिस्थितियों के चक्रव्यूह में जो रह गया उलझकर,
जवाब देंहटाएंपहेलियां कुछ ऐसी थी उलझी ही रहीं अर्थ न बदल सकी सुलझकर।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
सस्नेह प्रणाम।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अनमोल विचाराभिव्यक्ति से लेखनी ऊर्जावान हुई । हार्दिक आभार सहित सस्नेह अभिवादन श्वेता जी ! पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहृदयतल से हार्दिक आभार एवं धन्यवाद सर ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंवाह! सखी मीना जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पा कर सृजन सार्थक हुआ ।हृदयतल से आभार सखी शुभा जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंवाह ...वाह...वााह...मीना जी...शानदार कविता
जवाब देंहटाएंलेखनी को मान प्रदान करती स्नेहिल प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार अलकनन्दा जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंवाह, पक्षी का अनुभव कमाल का रहा वो बाकियों को भी आगाह करेगा अब खुद तो गलतियों से सीख ले ही लिया...!
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ॥हृदयतल से आभार शिवम जी ।सादर वन्दे ।
जवाब देंहटाएंवाह. बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली ॥हृदयतल से आभार सर ! सादर वन्दे ।
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह बहुत सुंदर 🙏
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थक करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार हरीश जी । सादर वन्दे !
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