धीरे-धीरे समय का
रिक्त घट
आज की देहरी पर
आन खड़ा है
परिवर्तित होने कल में
आने वाला कल भी
खड़ा है देहरी के
उस पार..
समय के भरे घट
के साथ
फिर वही दिन..,
फिर वही रात
नई उमंगें…,
नये संकल्प नई आशाओं
के साथ
समय-घट..,
भरता है ,रीतता है
और हम
आज के आँगन में
उसी के साथ खड़े हो कर
आकलन करते हैं
बीते कल का..,
आने वाले कल के साथ ।।
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