नींबू की पत्तियों की महक थी
या...,
भूरी बालू मे पड़ी सावनी रिमझिम की
हाथ में खुरपी थामे
वह समझ नहीं पाई
तभी एक जोड़ी निर्विकार आँखों ने
मानो …,
मन ही मन सरगोशी की
सुनो !
इस पेड़ के नींबू तुम्हारे गाँव आया करेंगे
तुम्हें बहुत पसन्द है ना..?
मन की बात पर
मन ही मन यक़ीन कर
वह आसमान की तरफ़ मुँह कर के
मुस्कुरा दी..,
सावन यूँ ही
आते-जाते रहे..,
नींबू के साथ उसकी पत्तियों का
सौंधापन भी वैसे ही
महकता रहा ..,
मगर सुना है !
तब से..
उसने अपने खाने की थाली से
नींबू का स्वाद हटा दिया है ।
***
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 05 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद यशोदा जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ.ओंकार सर ! सादर वन्दे !
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ. सुशील सर ! सादर वन्दे !
हटाएंबहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार हरीश जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंनींबू की पत्तियों की महक थी
जवाब देंहटाएंया...,
भूरी बालू मे पड़ी सावनी रिमझिम की
अनुपम
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनोज जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंदीप पर्व शुभ हो
जवाब देंहटाएंआपको भी दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ आ. सुशील सर 🙏
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