महंगाई के ग्राफ़ सा बढ़ता शहर और
कहीं किसी कोने से गुजरती एक कच्ची सी गली..,
न जाने कितने गाँव समाये है इसके वजूद में ।
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जीवन की धुरी होने के बाद भी
न जाने क्यों ठहरी ठहरी लगती हैं…,
स्त्रियाँ मुझे झील सरीखी लगती हैं ।
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विषम समय में मित्र से बड़ा कोई शत्रु
और शत्रु से बड़ा कोई मित्र नहीं होता..,
गहरे भेदी आपद में दुख का कारण बनते हैं ।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 18अक्टूबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम
पाँच लिंकों का आनन्द सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद पम्मी सिंह जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आ .ओंकार सर ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंसटीक ... कमाल की त्रिवेनियाँ हैं ... चुभती हुई ...
जवाब देंहटाएंसराहनीय एवं सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार आ . नासवा जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंजीवन की धुरी होने के बाद भी
जवाब देंहटाएंन जाने क्यों ठहरी ठहरी लगती हैं…,
स्त्रियाँ मुझे झील सरीखी लगती हैं ।
बहुत सुंदर और गहन।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ! सादर वन्दे !
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