महंगाई के ग्राफ़ सा बढ़ता शहर और
कहीं किसी कोने से गुजरती एक कच्ची सी गली..,
न जाने कितने गाँव समाये है इसके वजूद में ।
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जीवन की धुरी होने के बाद भी
न जाने क्यों ठहरी ठहरी लगती हैं…,
स्त्रियाँ मुझे झील सरीखी लगती हैं ।
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विषम समय में मित्र से बड़ा कोई शत्रु
और शत्रु से बड़ा कोई मित्र नहीं होता..,
गहरे भेदी आपद में दुख का कारण बनते हैं ।
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