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सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

“त्रिवेणी”

महंगाई के ग्राफ़ सा बढ़ता शहर और

कहीं किसी कोने से गुजरती एक कच्ची सी गली..,


न जाने कितने गाँव समाये है इसके वजूद में ।


***


जीवन की धुरी होने के बाद भी

न जाने क्यों ठहरी ठहरी लगती हैं…,


स्त्रियाँ मुझे झील सरीखी लगती हैं ।


***


विषम समय में मित्र से बड़ा कोई शत्रु 

और शत्रु से बड़ा कोई मित्र नहीं होता..,


गहरे भेदी आपद में दुख का कारण बनते हैं ।


***

रविवार, 1 अक्टूबर 2023

“क्षणिकाएँ “

निरभ्र गगन में..,

 अपनी धुन में मगन

वह अकेला ही..,

भर रहा था  परवाज़ें 

देखते ही देखते..,

साथी जुड़ते चले गए 

और..,

कारवाँ बनता गया 


*


सुना है…,

उनकी लिस्ट में अपना

नाम नहीं है 

 दुनियादारी की परिपाटी 

कहती है कि..,

रस्म अदायगी तो अब

अपनी तरफ से भी बनती है 

निभाने की परम्परा 

सभ्य होने की परिचायक है ।


*


अपरिचित आंगन में

गुलाब की कलम सी हैं

लड़कियाँ..,

जमीन से जुड़ाव में

थोड़ा वक्त लगता है 


*