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रविवार, 3 सितंबर 2023

“परिवर्तित परिवेश”

 

परिवर्तित परिवेश को

 देख कर हैरान हूँ

चाहे कोई कहे कुछ भी

मैं तुम्हारे साथ हूँ


मेरी नज़रों के समक्ष

समय के सागर में

अब तक…

बह गया कितना ही

 पानी..

जान कर अनजान हूँ


आस लिए चक्षुओं में

मायूसी का काम क्या

क्यों डरूँ किसी बात से 

 नहीं तेरा विश्वास क्या

घट रहा है क्या कहाँ पर

देख कर हैरान हूँ 


समर कितना शेष मेरा

तुम को तो है सब पता

कौन से दिन किस घड़ी में

होगी पूरी साधना

तुम से निर्मित विचित्र सृष्टि का

अति सूक्ष्म अनुभाग हूँ


***

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 04 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. “पाँच लिंकों का आनन्द” में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार! सादर!!

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  2. परिवर्तन अच्छा भी है और बुरा भी
    लेकिन अपने बनाए हुए रास्ता चलना ही उसकी सच्ची सेवा है.
    बड़ी सच्ची और अच्छी कविता बनी है.

    पधारिये- संस्कृति - विकृति

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    उत्तर
    1. आभार सहित स्वागत आपका । आपकी सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की ।

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  3. हार्दिक आभार सहित धन्यवाद आ. ओंकार सर ! सादर !!

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  4. उत्तर
    1. हार्दिक आभार सहित धन्यवाद आ. सुशील सर ! सादर !!

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. हार्दिक आभार सहित धन्यवाद आ. ज्योति सर ! सादर !!

      हटाएं
  6. हर हाल में, हर स्तिति में साथ देने का वादा ... लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  7. हार्दिक आभार सहित धन्यवाद आ. नासवा जी ! सादर !

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"