हिन्दी भाषा सर्वस्व मेरी।
“माँ” स्वरूपा प्रथम उच्चारण,
जननी व बाल सखी मेरी॥
आंग्ल हुए जब शीश किरीट,
व्यापारी के छद्म वेष में।
आपद में बनी संगिनी तुम,
कष्ट हारिणी संवाद सूत्र में॥
आर्यावर्त का रोम रोम,
आजन्म रहेगा तेरा ऋणी।
उपकार करें कैसे विस्मृत,
बिन तेरे लगे शून्य धरिणी॥
सतत प्रवाह महासागर सा,
आँचल विस्तार गगन जैसा।
आगन्तुक का स्वागत करती,
आतिथेय कहाँ होगा ऐसा ॥
धर्म संस्कृति आचार-विचार,
कोटिशः कण्ठ चिर संगिनी है।
भारत भू की भाषा महान,
हिन्दी मेरी अभिव्यक्ति है॥
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