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सोमवार, 3 जुलाई 2023

“शहर”


अर्वाचीन की गोद में

प्राचीन सजाये बैठा है 

मेरा शहर अपने भीतर

एक गाँव बसाये बैठा है


पौ फटने से पहले ही 

शुरू हो जाती है 

 परिंदों  की सुगबुगाह

पहले बच्चों से लगावट

फिर सतर्कता भरी हिदायत 

 

 घनी शाख़ों के बीच छिपी 

 सुर-सम्राज्ञी जैसे ही

 करती है आह्वान 

निकल पड़ते हैं सारे के सारे 

झुण्डों में…

लेकर नवउर्जित प्राण


अधमुंदी सी मेरी आँखों पर  

जैसे कोई शीतल जल 

छिड़कता है 

इस शहर के सीने में 

दिल नहीं एक सीधा-सादा 

गाँव धड़कता है 


***




10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत भाव ... गाँव हमेशा आस-पास रहता है ...

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    उत्तर
    1. हृदयतल से असीम आभार सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु ।

      हटाएं
  2. हृदयतल से असीम आभार सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस शहर के सीने में

    दिल नहीं एक सीधा-सादा

    गाँव धड़कता है

    बहुत खूब... गांव हमारे दिल में बसता है,सादर नमस्कार मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अभी-अभी आपकी ऊर्जात्मक स्नेहिल उपस्थिति को पोस्ट पर देख कर हार्दिक ख़ुशी हुई ।हृदयतल से असीम आभार कामिनी जी 🙏

      हटाएं
  4. बड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  5. सृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना हेतु आपका हृदयतल से असीम आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अधमुंदी सी मेरी आँखों पर

    जैसे कोई शीतल जल

    छिड़कता है

    इस शहर के सीने में

    दिल नहीं एक सीधा-सादा

    गाँव धड़कता है

    बेहतरीन कृति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बहुत आभार सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए 🙏

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"