शीत-घाम की राह में ,
वक़्त का पहिया चला करे ।
बन के साहस एक दूजे का ,
सदा सर्वदा साथ चले ॥
झंझावती तूफ़ानों से ,
क्यो हम भला डरा करें ।
ईश नाम की नैया से ,
मझधारों को पार करें ॥
कजरारी काली रातों में ,
तारा बन कर जीया करे ।
वेदनाओं को भूल-भाल कर ,
ख़ुशियों वाली राह चले ॥
मौन संसृति में गूंज उठे जब ,
रस आपूरित राग घनेरे ।
साथ हमारा सदा सर्वदा ,
क्यों व्यथित मन प्राण तेरे ॥
जैसे तीव्र अग्नि में तप कर ,
सोना खरा बना रहता है ।
संघर्षों की राह जीत कर ,
मानव सफल हुआ करता है ॥
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