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सोमवार, 1 मई 2023

“वितान”


वर्षों से

मन की अलगनी पर टंगे 

चंद विचार..

भूली भटकी सोच के

धागों में 

उलझे -पुलझे..

मुझसे अक्सर अपना 

वितान मांगते हैं

जी ने चाहा..

आपाधापी में गुजरते

 वक़्त से 

कुछ लम्हें चुराऊँ 

और उतार दूं इन्हें 

धुंधले पड़े उपेक्षित से 

कैनवास पर..

इनको भी दूं

 तितलियों से उड़ने वाले

 रंगीन पंख ..

मगर हमेशा मन चाहा

कहाँ होता है  ?

बंधनों के आदी 

कहाँ समझते हैं 

पंखों वाली

 चपलता-चतुरता..

पा कर स्वतंत्रता 

 पहली ही स्वच्छन्द उड़ान में

जा उलझते हैं..

गुलाब भरी टहनियों के

आँगन में ।


*

14 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ लम्हें चुराऊँ

    और उतार दूं इन्हें

    धुंधले पड़े उपेक्षित से

    कैनवास पर..

    इनको भी दूं

    तितलियों से उड़ने वाले

    रंगीन पंख ..

    सुंदर काव्य सृजन

    जवाब देंहटाएं
  2. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के हृदयतल से बहुत बहुत आभार मनोज जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. पहली ही स्वच्छन्द उड़ान में
    जा उलझते हैं..
    गुलाब भरी टहनियों के
    आँगन में ।

    .. बहुत सुंदर लिखा है।

    जवाब देंहटाएं
  4. हृदयतल से बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका हृदयतल से हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. अद्भुत रचना बहुत ही आभार मनोज जी
    thanks for sharing

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका एवं अनुज मनोज जी का बहुत बहुत आभार 🙏

      हटाएं
  7. आपकी लिखी रचना शुकवार 02 जून 2023 को साझा की गई है ,

    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद आ.दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे !

      हटाएं
  8. बंधनों के आदी

    कहाँ समझते हैं

    पंखों वाली

    चपलता-चतुरता..

    पा कर स्वतंत्रता

    पहली ही स्वच्छन्द उड़ान में

    जा उलझते हैं..

    गुलाब भरी टहनियों के

    आँगन में ।
    सही हा मीनाजी ! बंधनों के आदि अब सिर्फ कल्पनाओं में उड़ते हैं
    बेहतरीन सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित स्नेहिल प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की । हृदयतल से असीम आभार सुधा जी !

      हटाएं
  9. बंधनों के आदी
    कहाँ समझते हैं
    पंखों वाली
    चपलता-चतुरता..////
    बहुत खूब लिखा है आपने प्रिय मीना जी।खूँटे की गाय की भान्ति इस मन का ठौर इस बंधन से दूर कहाँ?? खुद से संवाद करते एकाकी मन की मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई आपको 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित स्नेहिल प्रतिक्रिया ने लेखनी को सार्थकता प्रदान की प्रिय रेणु जी ! हृदयतल से आपका असीम आभार ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"