पल !
मुझे भी चलना है
तुम्हारे साथ..
तुम से कदम मिलाकर
चल पड़ूँगी
इतना भरोसा तो है मुझे
खुद पर..
मैं तुमसे बस तुम्हारे अस्तित्व का
दशमांश चाहती हूँ
वो क्या है ना..?
तुम्हारी ही तरह
मेरे साझे भी काम बहुत हैं
चलने से पहले..
चुन लेना चाहती हूँ अपनी ख़ातिर
रेशम से भी रेशमी
रिश्तों के तार
फ़ुर्सत में उन्हें सुलझा कर
निहायत ही ..
खूबसूरत सी माला
जो गूँथनी है ।
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