आ गई फिर से दुबारा,
भूली बिसरी याद कोई।
कह सके हम जिसको अपना,
ऐसा न था नाम कोई॥
सपनों की सी बात लगती,
वे आंगन वे गली-कूँचे।
देख कर अब लोग हम से,
नाम के संग काम पूछे॥
स्वजनों से दूर जा कर,
स्वयं की पहचान खोई।
कह सके हम जिसको अपना,
ऐसा न था नाम कोई॥
अल्हड़ हँसी से गूँज उठते,
आँगन , छज्जे और चौबारे।
मक्कड़जालों से भरे हैं,
जीर्ण शीर्ण सब हुए बेचारे॥
धुआँ- धुआँ सा हो गया मन,
आँखें लगती खोई-खोई।
कह सके हम जिसको अपना,
ऐसा न था नाम कोई॥
***
अल्हड़ हँसी से गूँज उठते,
जवाब देंहटाएंआँगन , छज्जे और चौबारे।
मक्कड़जालों से भरे हैं,
जीर्ण शीर्ण सब हुए बेचारे॥
धुआँ- धुआँ सा हो गया मन,
आँखें लगती खोई-खोई।
कह सके हम जिसको अपना,
ऐसा न था नाम कोई॥
आज का सच. ..,कल जो सब कुछ अपना सा लगता था आज सब बेगाना हो गया है । बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति मीना जी 🙏
आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ कामिनी जी ! हृदयतल से असीम आभार । सादर सस्नेह वन्दे 🙏
हटाएंप्रिय मीना जी , बहुत दिन बाद ब्लॉग के साथ आपके ब्लॉग पर आना हुआ तो आपकी रचना मन को भावुक कर गयी| सच में सब कुछ लेकर भी काश वो लम्हें कोई कुछ पल को लौटा दे कितना अच्छा हो , पर समय के पहिये को कौन उलटा घुमा सका है |हमारी पीढ़ी निश्चित रूप से भाग्यशाली रही जिन्होंने उन अनमोल पलों को जिया |गाँव-गली भी अब पहचान नहीं पाते हम जैसे लोगों को | शहरीकरण की क्रूरता और आजीविका की विवशता ने हर इंसान को अपनों से दूर कर दिया | आत्मा की अनकही व्यथा को दर्शाती एक भावपूर्ण रचना जिसके लिए आप निसंदेह सराहना की पात्र हैं | सस्नेह शुभकामनाएं स्वीकार करें |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी,
जवाब देंहटाएंसादर सस्नेह वन्दे ! आपकी स्नेहिल उपस्थिति से लेखनी को मिले मान से अभिभूत हूँ ।सृजन को सार्थकता प्रदान करती भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से असीम आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 22 फरवरी 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार पम्मी जी ! सादर वन्दे!
हटाएंसुंदर💙❤️
जवाब देंहटाएंसृजन की सराहना हेतु बहुत बहुत आभार शिवम् जी 🙏
हटाएंअपनों से दूर, अपनी पहचान स्वयं से ही होकर गुजरती है, अपनाते और स्नेह का वातावरण तो आत्मीय लोगों के बीच जी आनंद देता है, सराहनीय सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी ।
हटाएंअल्हड़ हँसी से गूँज उठते,
जवाब देंहटाएंआँगन , छज्जे और चौबारे।
मक्कड़जालों से भरे हैं,
जीर्ण शीर्ण सब हुए बेचारे॥
जो थे अपने वो तो रहे नहीं अब तो बस यादें ही हैं । मार्मिक सृजन ।
आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ आ. दीदी ! हृदयतल से असीम आभार ! सादर सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति मीना जी बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ
जवाब देंहटाएंआप की ब्लॉग पर उपस्थिति हर्ष का विषय है मेरे लिए हार्दिक आभार संजय जी ।
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