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गुरुवार, 19 जनवरी 2023

“धूप”

( Click by me )


हाथ बढ़ा कर 

तुषार की मलमल सी

 चादर से ..,

छन कर आती

उजली हँसी सी धूप को

 अँजुरी में भर कर 

रखना तो चाहती हूँ अपने आस-पास

लेकिन..,

भोर की भाग-दौड़

और व्यस्त सी दिनचर्या से

चुरा के फ़ुर्सत के दो पल

मैं जब तक..,

पहुँचती हूँ खिड़की के पास

 तब तक ..,

वह भी नाराज सखी सी 

चली जाती है 

इमारतों के झुण्ड

या फिर ..,

पेड़ों के झुरमुट की ओट में ..॥ 


***



20 टिप्‍पणियां:

  1. धूप जो सबको मिलती है निरंतर चलती रहती है ...
    उसके समय अनुसार चलना होता है .... नहीं तो छूट जाती है ...

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    उत्तर
    1. सत्य कथन आ. नासवा जी ! उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार । सादर वन्दे ।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती सराहना हेतु हार्दिक आभार आ.विश्वमोहन जी ! सादर वन्दे ।

      हटाएं
  3. जी दी
    आपकी रचना पढ़ते हुए-

    व्यस्ताओं की चहलकदमी में
    सोंधी ख़ुशबुएँ जाग रही थीं
    किसी की स्मृति में
    शब्द बौराए हुए उड़े जा रहे थे
    ठंडी हो रही साँझ के लिए
    गर्माहट की ललक में
    धूप की कतरन चुनती हुई
    अंधेरों में खो जाती हूँ...।
    -------
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी।
    सस्नेह प्रणाम।
    ------
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० जनवरी २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन का मान बढ़ाती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से हृदय प्रसन्नता से भर गया श्वेता ! आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ ।पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार । सस्नेह सादर वन्दे ।


      हटाएं
  4. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आ. यशोदा जी ! सादर वन्दे ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आ.ओंकार सर ! सादर वन्दे ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सच्ची ..... आज कल धूप के सानिध्य की ज़रूरत होती है , लेकिन उसे अपने हिसाब से आना है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ आ. दीदी! हार्दिक आभार,सादर सस्नेह वन्दे ।

      हटाएं
  7. हँसती उजली धूप नाराज सखी सी...
    सच में ऐसा ही लगता है
    मन के अनकहे से भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति...
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया सुधा जी! बहुत बहुत आभार.., सादर सस्नेह वन्दे ।

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  9. जीवन जैसी धूप ।
    सुंदर चित्र जैसी रचना ।

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  10. सृजन और चित्र की प्रशंसा हेतु बहुत बहुत आभार जिज्ञासा जी ! सस्नेह सादर वन्दे ।

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  11. दिल ढूंढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन। कुछ-कुछ ऐसी ही लगी मुझे आपकी बात। ज़िन्दगी के मसरूफ़ सफ़र में सुकून के पल तो चुराने पर ही मिल पाते हैं। और उन्हें चुराने का हुनर ख़ुद ही सीखना पड़ता है, कोई सिखाता नहीं। आपकी अभिव्यक्ति तथा संलग्न चित्र दोनों ही अच्छे हैं।

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    उत्तर
    1. सत्य कथन जितेन्द्र जी ! सुकून के पलों का चुराने का हुनर खुद को ही सीखना पड़ता है । गुलज़ार साहब के गाने जितनी प्रशंसा करूँ कम होगी मेरे पसन्दीदा गानों में से एक है यह । फ़ुर्सत के पलों यह तस्वीर खींची और पोस्ट के साथ संलग्न कर दी ।आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए के लिए हृदय से असीम आभार । सादर वन्दे!

      हटाएं
  12. बहुत कुछ कल्‍पना....की आपने मीना जी...वाह क्‍या खूब लिखा कि ''तुषार की मलमल सी

    चादर से ..,

    छन कर आती

    उजली हँसी सी धूप को

    अँजुरी में भर कर''....वाह

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी ऊर्जावान स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ अलकनन्दा जी! सादर आभार सहित सस्नेह वन्दे ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"