लोकल ट्रेन के मुसाफ़िरों की तरह
इमारतों की भीड़ में
खड़े हैं कुछ पेड़
किंकर्तव्यविमूढ़ और सहमे से
बढ़ती भीड़ को देख कर
तय नहीं कर पा रहे कि अब
कितना और सिमटे ॥
***
अक्सर मैं
हाथ की लकीरों में
तुम्हें ढूँढा करती हूँ
क्या पता …,
गूगल मैप की तरह इनमें
तुम्हारी कोई
निशानदेही कहीं मिल ही जाए ॥
***
चाँद भी रचता है
कविताएं..
जब धवल चाँदनी में लिपटा
उतरता है ,
नीलमणि सी जलराशि में
तब ..
लहर लहर में
खिल उठते हैं
नीलकमल सरीखे शब्द ॥
***
वाह. बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसराहना भरे शब्दों से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आ.ओंकार सर ! सादर वन्दे ।
हटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 9 जनवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
पाँच लिंकों का आनन्द में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीया दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
हटाएंहर क्षणिका बहुत कुछ कहती हुई ...
जवाब देंहटाएंआपकी उत्साहवर्धन करती सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ आ. दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
हटाएंअक्सर मैं
जवाब देंहटाएंहाथ की लकीरों में
तुम्हें ढूँढा करती हूँ
क्या पता …,
गूगल मैप की तरह इनमें
तुम्हारी कोई
निशानदेही कहीं मिल ही जाए ॥
चाँद भी रचता है
कविताएं... .
मन को छुती शब्दों कि कियारी ॥
बेहतरीन सृजन / उम्दा /
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार 🙏
जवाब देंहटाएंवाह! तीनों रचनाएँ नि:शब्द कर जाती हैं, दिल को छूता हुआ सृजन!
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया पा कर सृजन सार्थक हुआ ।हार्दिक आभार अनीता जी!
हटाएंसादर सस्नेह वन्दे ।
वाह!मीना जी ,बहुत खूब! तीनों क्षणिकाएं लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शुभा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
हटाएंआहा दी कितनी सुंदर और भावपूर्ण क्षणिकायें हैं। सारी अच्छी हैं पर अंतिम वाली बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं--------
बादलों की घाटियों में
फूल,पौधे,घर,सड़क
रंग सारे खो गये
पार क्षिति के गाँव
सूरज जगे
नभ के नीले ताल पर
कुमुदनियों के
टँके चमकदार बूटे।
----
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
आपकी ऊर्जावान स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया श्वेता । हृदयतल से स्नेहिल आभार । सस्नेह…।
हटाएंआहा दी कितनी सुंदर और भावपूर्ण क्षणिकायें हैं। सारी अच्छी हैं पर अंतिम वाली बहुत बहुत बहुत अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएं--------
बादलों की घाटियों में
फूल,पौधे,घर,सड़क
रंग सारे खो गये
पार क्षिति के गाँव
सूरज जगे
नभ के नीले ताल पर
कुमुदनियों के
टँके चमकदार बूटे।
----
सस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
आपकी ऊर्जावान स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया श्वेता । हृदयतल से स्नेहिल आभार । सस्नेह…।
हटाएंअक्सर मैं
जवाब देंहटाएंहाथ की लकीरों में
तुम्हें ढूँढा करती हूँ
क्या पता …,
गूगल मैप की तरह इनमें
तुम्हारी कोई
निशानदेही कहीं मिल ही जाए...मन को छूती सराहनीय क्षणिकायें।
बहुत ही सुंदर।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ । हृदयतल से स्नेहिल आभार । सस्नेह..।
हटाएंगागर में सागर सी क्षणिकाएं सखी बहुत ही सुन्दर और बहुत कुछ बोलती
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को नव ऊर्जा प्रदान की ।हृदय से असीम आभार सखी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
जवाब देंहटाएंअक्सर मैं
जवाब देंहटाएंहाथ की लकीरों में
तुम्हें ढूँढा करती हूँ
क्या पता …,
गूगल मैप की तरह इनमें
तुम्हारी कोई
निशानदेही कहीं मिल ही जाए ॥
वाह!!!!
सचमुच गागर में सागर सी
लाजवाब क्षणिकाएं ।
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को नव ऊर्जा प्रदान की ।हृदय से असीम आभार सुधा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (12-1-23} को "कुछ कम तो न था ..."(चर्चा अंक 4634) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी 🙏
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जवाब देंहटाएंचाँद भी रचता है
कविताएं..
जब धवल चाँदनी में लिपटा
उतरता है ,
नीलमणि सी जलराशि में
तब ..
लहर लहर में
खिल उठते हैं
नीलकमल सरीखे शब्द ॥
कितनी सुंदर क्षणिकाएं। एक एक शब्द मन में उतरता हुआ । बधाई।
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने लेखनी को नव ऊर्जा प्रदान की ।हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी ! सादर सस्नेह वन्दे ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन क्षणिकाएं ... मन की भावनाओं को तरंगित करती हुई ...
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला । हार्दिक आभार आ. नासवा जी ! सादर वन्दे ।
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