आज लगे कल की सी बात,
सरदी गरमी और बरसात ।
गोरखधन्धों में गुजर गया ,
यह साल भी निकल गया।
दहलीज़ पर आन खड़ा ,
साथी पुराना भेस नया ।
स्वागत का थाल सजाएँ ,
कुछ सुने और कुछ सुनाएँ।
सारे कर्तव्य हमारे लिए ,
कुछ तुम भी तो निभाओ ।
सदा अपनी ही नहीं ,
औरों की भी सुनते जाओ।
नाराजगी तुमसे बहुत है ,
उम्मीद है समझ ही लोगे ।
भूल कर अपनी सुविधा ,
सच्चे मीत बन ही सकोगे ।
कहना क्या और सुनना क्या है ,
तुमसे बस इतना कहना है ।
दीन दुखी को गले लगा कर ,
सब से सुख साझा करना है ।
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