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सोमवार, 14 नवंबर 2022

“त्रिवेणी”



मेघों की उदंडता अपने चरम पर है 

धरा से लेकर धरा पर ही उलीचते रहते हैं पानी..,


 अब इन्हें कौन समझाए लेन-देन की सीमाएँ ॥

🍁


इतिहास गवाह रहा है इस बात का कि 

भाईचारे में नेह कम द्वेष अधिक पलता है ..,


औपचारिकता के बीच ही पलता है सौहार्द ॥

🍁


मेरे पास हो कर भी कितने दूर थे तुम

फासला बताने को मापक भी कम लगते हैं 


उलझनों के भी अपने भंवर हुआ करते हैं 


🍁

14 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-11-22} को "भारतीय अनुभूति का प्राणतत्त्व -- प्राणवायु"(चर्चा अंक 4612) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार कामिनी जी !

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  2. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ओंकार सर !

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  3. गहन भाव प्रवणता सहेजे अभिनव त्रिवेणियां मीना जी।
    मन मोहक।

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    उत्तर
    1. हृदय से असीम आभार कुसुम जी !आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ।

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  4. तीनों त्रिवेणियों में गहरे विचार अभिव्यक्त हुए। विचार तो बहुत आते हैं पर ऐसी अभिव्यक्ति कम ही उतरती है कलम से।

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    उत्तर
    1. हृदय से असीम आभार मीना जी ! आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ।

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  5. हृदय से असीम आभार अमृता जी ! आपकी स्नेहिल उपस्थिति से सृजन सार्थक हुआ।

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  6. बहुत ही सुंदर सार्थक त्रिवेणी।

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हृदयतल से आभार

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"