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सोमवार, 14 नवंबर 2022

“त्रिवेणी”



मेघों की उदंडता अपने चरम पर है 

धरा से लेकर धरा पर ही उलीचते रहते हैं पानी..,


 अब इन्हें कौन समझाए लेन-देन की सीमाएँ ॥

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इतिहास गवाह रहा है इस बात का कि 

भाईचारे में नेह कम द्वेष अधिक पलता है ..,


औपचारिकता के बीच ही पलता है सौहार्द ॥

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मेरे पास हो कर भी कितने दूर थे तुम

फासला बताने को मापक भी कम लगते हैं 


उलझनों के भी अपने भंवर हुआ करते हैं 


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सोमवार, 7 नवंबर 2022

“प्रवृत्ति”



सांसारिकता की किताब में

एक धुरी पर आकर

व्यक्ति की भागम-भाग का

 रथ ठहर जाता है 

एक पड़ाव पर..,

 निवृत्ति की प्रवृत्ति को  

परिभाषित करना

 थोड़ी टेढ़ी खीर है 

क्योंकि..,

समय के रथ का पहिया

तो नहीं रूकता लेकिन 

मानव मन

आज और कल के बीच

हिलकोरे खाता..,

आ कर ठहर जाता है 

 आज की दहलीज़ पर

समय के भँवर में 

 डूबता उतराता

विरक्ति को भूल अनुरक्ति की ओर 

कब प्रवृत्त होता है ..,

उसके स्वयं के अहसासों से 

परे की बात है ॥


🍁

    

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

“तमस”



चारों तरफ तमस यहाँ है ।


उबड़-खाबड़ दुर्गम राहें ,

अंत नहीं दिखता ।

पट्टी बंधी दृग पटल पर ,

पग से पग अटका ।

तिमिरमयी रजनी में अब ,


उजियारे की किरण कहाँ है ।

      

उमड.-घुमड़ कर बादल जैसी ,

जब छायें बाधाएँ ।

गहन भंवर में उलझा मांझी ,

साथी किसे बनाएँ ।

उखड़ी सांसों के संग सोचे ,


टूटी नैया छोर वहाँ है ।


मृग मरीचिका में फंस उलझा ,

भूला अपनी गलियाँ ।

अंध कूप प्रत्याशाओं का ,

उसमें  डूबा मनवा ।

नागफनी की इस बगिया में ,


काँटे जहाँ तहाँ है ।

अपना कौन , कहाँ है ॥


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