मेघों की उदंडता अपने चरम पर है
धरा से लेकर धरा पर ही उलीचते रहते हैं पानी..,
अब इन्हें कौन समझाए लेन-देन की सीमाएँ ॥
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इतिहास गवाह रहा है इस बात का कि
भाईचारे में नेह कम द्वेष अधिक पलता है ..,
औपचारिकता के बीच ही पलता है सौहार्द ॥
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मेरे पास हो कर भी कितने दूर थे तुम
फासला बताने को मापक भी कम लगते हैं
उलझनों के भी अपने भंवर हुआ करते हैं
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