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रविवार, 16 अक्टूबर 2022

“साथी”

चल कहीं दूर चलें साथी

गम से दूर रहें साथी


व्योम चौक में उतरा चंदा

तारे बैठ गिने साथी 


आंगन बीच सिंकेगे भुट्टे

खायें सब मिलके साथी


सौंधी माटी महका आँगन

श्याम घटा बरसे साथी


झुमके,कंगन,पायल खनके

मेला पनघट पे साथी


हरसिंगार लदा फूलों से

चल चल कर देखे साथी


जीवन रेशम के धागों सा

देख नहीं उलझे साथी


***


10 टिप्‍पणियां:

  1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ओंकार सर !

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज सोमवार 17 अक्टूबर, 2022 को     "पर्व अहोई-अष्टमी, व्रत-पूजन का पर्व" (चर्चा अंक-4584)    पर भी है।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

    जवाब देंहटाएं
  3. सृजन को चर्चा मंच की चर्चा में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी सर !

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन रेशम के धागों सा
    देख नहीं उलझे साथी
    .. सकारात्मक भाव से सजी सुंदर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय ।

      हटाएं
  6. हरसिंगार की खुशबू की तरह ... ऐसे साथी का साथ सदा बना रहे।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल शुभेच्छा मेरे लिए वरदान सरीखी है हृदय की गहराइयों से असीम आभार 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"