काली अँधियारी रात में
अंधकार को दूर भगाएँ
आओ साथी ! सब मिलकर
दीपावली के दीप जलाएँ
आँगन की दीवारों पर
छज्जों और चौबारों पर
संकरी सर्पिल तम में डूबी
कच्ची निर्जन सी वीथियों पर
स्वर्ण सदृश आभा सम्पन्न
जगमग करते दीप जलाएँ
आशाएँ करें स्पर्श
नभ के विस्तार को
मान भरे भावों से
पैर भू पर रहें टिकाएँ
निश्च्छलता के तेल से
आस्था के दीप जलाएँ
द्वेष के काँटें बुहारे
समृद्धि के रंगों से
सजे घर में तोरण द्वार
आंगन रंगाकृतियों से
नेह के रंग घोल कर
समरसता के दीप जलाएँ
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🪔🪔 दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ 🪔🪔