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शनिवार, 22 अक्टूबर 2022

“दीप जलाएँ”



काली अँधियारी रात में

अंधकार को दूर भगाएँ 

आओ साथी ! सब मिलकर 

दीपावली के दीप जलाएँ 


आँगन की दीवारों पर

छज्जों और चौबारों पर

संकरी सर्पिल तम में डूबी

कच्ची निर्जन सी वीथियों पर

स्वर्ण सदृश आभा सम्पन्न 

जगमग करते दीप जलाएँ 


आशाएँ करें स्पर्श 

नभ के विस्तार को

मान भरे भावों से

पैर भू पर रहें टिकाएँ 

निश्च्छलता के तेल से

आस्था के दीप जलाएँ


द्वेष के काँटें बुहारे

समृद्धि के रंगों से

सजे घर में तोरण द्वार 

आंगन रंगाकृतियों से

नेह के रंग घोल कर

समरसता के दीप जलाएँ 


🍁

🪔🪔 दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ 🪔🪔



 






रविवार, 16 अक्टूबर 2022

“साथी”

चल कहीं दूर चलें साथी

गम से दूर रहें साथी


व्योम चौक में उतरा चंदा

तारे बैठ गिने साथी 


आंगन बीच सिंकेगे भुट्टे

खायें सब मिलके साथी


सौंधी माटी महका आँगन

श्याम घटा बरसे साथी


झुमके,कंगन,पायल खनके

मेला पनघट पे साथी


हरसिंगार लदा फूलों से

चल चल कर देखे साथी


जीवन रेशम के धागों सा

देख नहीं उलझे साथी


***


मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022

“सुख स्त्रोत”



घनी हरीतिमा बीच बसा

यह कैसा उपवन है 

सघन घरों के कानन में

रम्य मनोहर आँगन है


बादल घिरते साँझ सकारे

सृष्टि का मंजुल वर है

मन वितान अगरू सा महके

मधुरम पाखी कलरव है 


अनुपम थाती वात्सल्य की

कभी सुख है कभी दुख है

सौरभमय मृदुल बयार सा

जीवन - राग यही है 


राग-द्वेष और ईर्ष्या-छल से

मुक्त देवालय सम है 

दिव्य स्त्रोत परमानन्द का

प्रथम वसन्त सुमन है


मृग छौने सा चंचल चित्त

करता इसमें विचरण है

ईश्वर के वरदान सदृश 

नैसर्गिक सुख -सार यही है 


***