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सोमवार, 19 सितंबर 2022

“क्षणिकाएँ ”



“मौन”


मौन के गर्भ में निहित है 

अकाट्य सत्य  

सत्य के काँटों की फांस

भला..,

किसको भली लगती है 

“जीओ और जीने दो”

 के लिए ..,

सदा सर्वदा आवश्यक है

सत्य का मौन होना ।


“तृष्णा”


न जाने क्यों..?

ऊषा रश्मियों में नहाए

स्वर्ण सदृश सैकत स्तूपों पर उगी

 विरल  झाड़ियाँ..,

 मुझे बोध कराती है तृष्णा का

जो कहीं भी कभी भी 

उठा लेती है अपना सिर..,

और फिर दम तोड़ देती हैं 

सूखते जलाशय की

शफरियों की मानिन्द ।


“शब्द”


विचार खुद की ख़ातिर 

तलाशते हैं शब्दों का संसार 

शब्दों की तासीर 

फूल सरीखी हो तो अच्छा है 

 शूल का शब्दों के बीच क्या काम

 क्योंकि..,

सबके दामन में अपने-अपने 

हिस्से के शूल तो 

पहले से ही मौजूद हैं ।


***













रविवार, 4 सितंबर 2022

“क्षणिकाएँ”


मेरी कविताओं में

गुम है एक औरत

इससे पहले कि ..,

थाह लूं उसके मन की

हवा के झोंके सी..,

वह निकल जाती है 

मेरी पहुँच से परे ।


🍁


भावनाएँ सोते सी 

बहती बहती रूक जाती हैं 

यकबयक..

बड़े ताकतवर हैं

अनचीन्हे अवरोध के पुल ।


🍁


झील के तल का अंधकार

 खींच रहा है नाव को अपनी ओर 

लेकिन वह भी..,

ज़िद्दी लड़की सी ,लहरों से लड़ती 

अपनी ही धुन में मगन

चली जा रही है.., 

इस किनारे से उस किनारे ।


🍁