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बुधवार, 17 अगस्त 2022

“वियोग”



यमुना तट पर विरह बरसे

गोपियों का मूक क्रंदन

कान्हा मथुरा धाम पधारे

अब बने वो देवकी नन्दन


ग्वाल बाल  मौन बैठे

गायें नित आँसू बहाएं

सांवरे बिन कौन उन संग

 हँसे खेले गुनगुनाएं

नन्द जी का द्वार सूना

नीर भरे माँ के नयन


अनमनी सी डोलती हैं

कदम्ब की ये डालियां

चाँदनी रातों में खिलती

ब्रह्म कमल की क्यारियां

बांसुरी निज कर में थामे

राधा करती गहन मंथन

    

आज भी ब्रज धाम राहें

गोपेश्वर को ढूंढ़ती हैं

बांसुरी की मधुर तानें

बस यादों में गूंजती हैं

पावन माटी वृंदावन की

नर- नारी नित करे वन्दन


***

18 टिप्‍पणियां:

  1. कृष्ण शब्द के उच्चारण से एक माधुर्य मन वीणा की तारों में झंकृत होता है और एक अलौकिक संगीत का प्रवाह शिराओं को जग के बंधनों से मुक्त कर अनंत सुख का अनुभव कराते है।
    कर श्रृंगार मैं जमना पे इत ऊत तुझको ढ़ूँढू
    कहाँ छुपा तू जीभर के आज मोहे बतियाने दे

    मैं हूँ तेरी बाबरी राधा तू मेरा साँवरा बन जा
    छोड़ जगत की चिंता कान्हा प्रेम रंग छलकाने दे।
    -----
    अत्यंत सुंदर भावपूर्ण सृजन दी।
    जनमाष्टमी के पूर्व क़लम माधुर्य छलका रही है।
    सस्नेह प्रणाम
    सादर।

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  2. गोपियों और राधा रानी जैसे मोहक भाव श्रृंगार रस की शोभा को द्विगुणित कर रहे हैं श्वेता !आपकी कलम इसी तरह अति उत्तम सृजन
    करती रहे .., कृष्ण रंग में रंगी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ । हृदय से असीम आभार ।
    कृष्ण जन्माष्टमी की अग्रिम शुभकामनाएँ ।
    सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर लिखा है मन को छूते भाव।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. आपका हृदय से असीम आभार अनीता ! सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार 18 अगस्त, 2022 को    "हे मनमोहन देश में, फिर से लो अवतार"  (चर्चा अंक-4525)
       
    पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच की आज की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी सर ! सादर वन्दे !

      हटाएं
  6. वाह वाह! अच्छी अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय ओंकार सिंह “विवेक” जी !

      हटाएं
  7. बहुत ही सुन्दर रचना सखी कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  8. आपका हृदय से असीम आभार सखी ! सस्नेह वन्दे ! आपको भी कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  9. बहुत सुंदर रचना ।
    लेकिन अभी तो जन्म ले कर गोकुल पधारने वाले हैं कान्हा । जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ ।

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  10. मुझे कान्हा से सदा यही शिकायत रही कि उन्होंने अपने बचपन को क्यों बिसरा दिया । एक दो बार पहले भी लिखा तो भ्रमर गीत का विषय ही केन्द्र में रहा । आप आए और सराहना की..,लिखना सफल हुआ आ.दीदी ! आपको भी कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ ।सादर सस्नेह वन्दे!

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  11. वाह ! जन्माष्टमी महोत्सव पर सुंदर रचना ।बधाई मीना जी ।

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  12. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार जिज्ञासा जी ।जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  13. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ओंकार सर !

    जवाब देंहटाएं
  14. आज भी ब्रज धाम राहें

    गोपेश्वर को ढूंढ़ती हैं

    बांसुरी की मधुर तानें

    बस यादों में गूंजती हैं

    मुझे भी कान्हा से आप ही की तरह बहुत शिकायत है।् वोतो सभी को बिसरा दिए लेकिन गोपियां तो नहीं भुला पाई न।

    बेहद कोमल भावों से सराबोर मनमोहक सृजन किया है आपने मीना जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  15. आपकी ऊर्जावान स्नेहिल उपस्थिति के लिए हृदय से आभारी हूँ कामिनी जी ! सादर सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"